गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

तुम

जितनी दूर
जहाँ तक
मेरी आँखें
न पहुँच सके
वहां तक
मैं 
जितनी जल्दी पहुंचू
तुम
मुझे
पहले खड़े मिलते ह़ो
मेरे पास
सिमट आते ह़ो.
हवा से तेज़ बहते
मुझको
मुझसे
पहले स्पर्श कर जाते ह़ो.
रोम-रोम
पुलकित कर
रसवर्षा कर
मन-मैल घुला ले जाते ह़ो.
सारी चिंताएं घुलकर
प्यास बढ़ा जाती हैं
मन का ताप बढ़ा जाती हैं.
करती विनम्र आग्रह
विनम्र चाह तुमसे
हर स्पर्श से

रिसाओ अंश-अंश
बस एक बार
बस एक बार....
उमड़-घुमड़ बरसो
मन तूफान बन
गर्जन-कर्षण संग
खुद में
समो ले जाओ तुम
डुबो ले जाओ तुम.........

3 टिप्‍पणियां:

प्रशान्त ने कहा…

बेचैन करने वाली कविता.


क्या इतना प्रेम वाकई संभव है ?

Dr. Amarjeet Kaunke ने कहा…

बस एक बार
बस एक बार....
उमड़-घुमड़ बरसो
मन तूफान बन
गर्जन-कर्षण संग
खुद में
समो ले जाओ तुम
डुबो ले जाओ तुम.........

कमाल की अभिव्यक्ति है...बहुत ही भावपूर्त और वेगमई.....

www.amarjeetkaunke.blogspot.com

Arpita ने कहा…

धन्यवाद...बस इसी तरह मेरे भाव घनीभूत हो और बरसे......