छोटी नौका में सवार......
सागर अपार.....
मांझी निराकार..............
मन पतवार खे......
कर रही पार....................
===========
सुबह से शाम तक..............
दस्तक दी हर दर पर मैंने
हासिल हुई न कहीं
चिन्गारी-ए-सुकून...........
============
मन में हज़ार ताले लगा........
चाबियाँ गुमा
भट्कते-फ़िरना.......
पँहुचना वहीं....
उस दरवाज़े पर जहाँ हो.......
=============
उनसे
चंद मुलाकातें हुई.....
चंद बातें हुई........
बस यही कमाया हमने
ज़िन्दगी में........
==============
कभी मुलाकात होगी
रास्ते चलते.....
इसी ख्वाहिश में........
भटकते हैं राहों में............
================
रात के अंधेरे
सताते हैं मुझे....
दबे पांवों आते है यहाँ
रोज़ मुझसे बतियाते हैं.....
मैं दम साधे सुनती हूँ उसे.....
......और
आहट लेती हूँ
चुप बैठे ढ़ूंढ़ती हूँ....
...........................
सुबह के उजाले को...
मुबारक हो! एक चिड़िया की चहचहाहट सुनाई दी मुझे.......
=============
इश्क के उड़्नखटोले की
करते हैं ख्वाहिश तमाम लोग.....
नसीब होता है
ये रुह-ए-एह्सास......
बस
तकदीर वालों को .......
=============
इश्क के फूल खिले सरे-गुलशन
सरे-राह लोग पागल हैं
बस .....
एक फूल की ख्वाहिश ने जाने
कितनों के दिल बेज़ार किये.............
==============
हर पल
मुझे कुछ देने की
ख्वाहिश करते हैं
क्या इश्क की गली में
वो
किसी के तलबगार नहीं???
===============
शाम ने शाम को
हसीं बना
छेड़ा मुझको....
ज़रा
इश्क की छ्तरी से बाहर निकलो
और
नज़ारे करो दुनिया के......
===============
बिन दर्द के
लफ़्ज़ों को न दीजिये दस्तक....
नाज़ुक हैं ये किसी ख्वाब की तरह
बिखर जायेंगे
जो मीठी नींद टूटी............
बस्स...
किसी तरह इन्हें सम्भाले रखिये..........=
================
एक सुकुन-ए-ख्वहिश ने
दर्द दिया इतना.......
अब न चलने का जोश रहा
न वजह-ए-चाहत ही बची............
==============
इश्क-ए-बागबां का पता न पूछ मुझ से
ये बिखरा है दिल-ए-रह्गुज़र में
ज़रा आँखों को बन्द कर मह्सूस कर इसको
खुश्बू ही खुश्बू मिलेगी ज़र्रे-ज़र्रे में..........
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सागर अपार.....
मांझी निराकार..............
मन पतवार खे......
कर रही पार....................
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सुबह से शाम तक..............
दस्तक दी हर दर पर मैंने
हासिल हुई न कहीं
चिन्गारी-ए-सुकून...........
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मन में हज़ार ताले लगा........
चाबियाँ गुमा
भट्कते-फ़िरना.......
पँहुचना वहीं....
उस दरवाज़े पर जहाँ हो.......
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उनसे
चंद मुलाकातें हुई.....
चंद बातें हुई........
बस यही कमाया हमने
ज़िन्दगी में........
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कभी मुलाकात होगी
रास्ते चलते.....
इसी ख्वाहिश में........
भटकते हैं राहों में............
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रात के अंधेरे
सताते हैं मुझे....
दबे पांवों आते है यहाँ
रोज़ मुझसे बतियाते हैं.....
मैं दम साधे सुनती हूँ उसे.....
......और
आहट लेती हूँ
चुप बैठे ढ़ूंढ़ती हूँ....
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सुबह के उजाले को...
मुबारक हो! एक चिड़िया की चहचहाहट सुनाई दी मुझे.......
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इश्क के उड़्नखटोले की
करते हैं ख्वाहिश तमाम लोग.....
नसीब होता है
ये रुह-ए-एह्सास......
बस
तकदीर वालों को .......
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इश्क के फूल खिले सरे-गुलशन
सरे-राह लोग पागल हैं
बस .....
एक फूल की ख्वाहिश ने जाने
कितनों के दिल बेज़ार किये.............
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हर पल
मुझे कुछ देने की
ख्वाहिश करते हैं
क्या इश्क की गली में
वो
किसी के तलबगार नहीं???
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शाम ने शाम को
हसीं बना
छेड़ा मुझको....
ज़रा
इश्क की छ्तरी से बाहर निकलो
और
नज़ारे करो दुनिया के......
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बिन दर्द के
लफ़्ज़ों को न दीजिये दस्तक....
नाज़ुक हैं ये किसी ख्वाब की तरह
बिखर जायेंगे
जो मीठी नींद टूटी............
बस्स...
किसी तरह इन्हें सम्भाले रखिये..........=
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एक सुकुन-ए-ख्वहिश ने
दर्द दिया इतना.......
अब न चलने का जोश रहा
न वजह-ए-चाहत ही बची............
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इश्क-ए-बागबां का पता न पूछ मुझ से
ये बिखरा है दिल-ए-रह्गुज़र में
ज़रा आँखों को बन्द कर मह्सूस कर इसको
खुश्बू ही खुश्बू मिलेगी ज़र्रे-ज़र्रे में..........
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1 टिप्पणी:
बहुत खूबसूरत अहसास हैं पर बहुत नाजुक भी शब्दों तक आते आते ऊर्जा बिखरने सी लगती है, है न ?
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