सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

दस्तक

दो साये लिपटे हैं
एक इश्क़
और
एक जुनूँ का मुझसे
मन
गुम्फित है
विचलित है
परेशां है.
मन के
दोनों दरवाज़ों पर
होती निरंतर दस्तक से
हैरां-परेशां ह़ो
मुझ नास्तिक ने
खुदा को दी आवाज़.

1 टिप्पणी:

प्रशान्त ने कहा…

मनवांछित की प्राप्ती के लिये तुम्हारी प्रार्थना में शामिल......