सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

किताब के पन्ने

अलमारी में जमी हैं
तमाम किताबें
उनमें  है शामिल
ढेर-सारे पन्ने,
किताबों की दुनिया के
कुछ पन्ने
जाने-पहचाने
दस्तक देते
पुकारते
बैचेन करते
मिलते तो
साथ बैठते,
बतियाते
लंगोटिया यार जैसे.
फुसफुसाते
अपनी
और
मेरी बात
पक्की सहेली जैसे.

मेरे
मौन रहने पर
उदास होने पर
वे
आँखें नम करते
दहाड़े मार रोते
तसल्ली देते
कन्धों पे मेरे
अपना हाथ रखते
मुझे
कन्धों पर टिका
अपने आंसू छिपाते
और
हँसते हुए
फिर मिलने के वादे के साथ
मुस्कराहट के
मोती उपहार में दे
मुझे विदा करते. 

1 टिप्पणी:

प्रशान्त ने कहा…

किताबें ऐसे साथी हैं जो हमें जुदा नहीं करते, हम उन्हें जुदा करते हैं खुद से. वो तो हमारे सीने से लग सोने को भी तैयार रहते हैं.

आलमारी में जमा पुस्तकों को याद करना अच्छा लगा.