दिन गुज़रा
बच्चों सी गिनती गिन-गिन
जाने कितनी बार
गिनतियाँ खत्म हुई
पर
उन्हें नहीं आना था
सो नहीं आये........
पर
इस दिल बहलाने वाले खेल से
दोस्ती ह़ो गयी.
अब जब
अकेले होते हैं
यूँ ही
बिना किसी के इंतज़ार में
गिनतियाँ गिनना मेरा शगल बना.
अक्सर
इस
शगल में
हम भूल भी जाते हैं
कि
आखिर किस के इंतज़ार में
हम
गिनतियाँ गिन रहे हैं
और
बस हम अब तक
मंज़िलें-एहसास से मरहूम हैं......
4 टिप्पणियां:
लाजवाब .... !!!!!
शुक्रिया,हौसला बढ़ाने का......
sach mein badhiya. gintiyon ka silsila..
क्या????
सच में!!!
धन्यवाद....बस इसी तरह पढो मुझे और बाकियों को भी.......
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