शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

रात

अंधेरो की गर्द उड़ती
सूखा तूफ़ान लिए
गुबार उड़ाती
बादल बनाती
सरक रही मद्धम-मद्धम....
मन की पहेलियों में गुम्फित
विचारों में विचलित
शब्दों के बादल उमड़ाती
उमड़ती-घुमड़ती...
राहें तकती
पर
वो
बरसती  नहीं
घुट जाती
गुम जाती
भाप बन उड़ जाती
रह जाती प्यास
विकलता से आहत क्षत-विक्षत...

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