बुधवार, 1 दिसंबर 2010

तुम्हारा आना.....

 

मैं

अपने हिस्से का

जागना-सोना

हंसना-रोना

पीड़ा-उदासी

शोर-खामोशी

सलीके में रहना

इसके उलट चलना

बुरी नज़र से गुज़रना

सपनों को जीना

अनोखेपन में बसना

आसमान में उड़ना

पलकों में सपने सजाना

सबों की स्मृति से गुम हो जाना

प्रतीक्षा में आंसू बहाना

चहक-खिलखिलाहट में महकना

मौन के रेशों में उलझना

रुदन की पीली धूप में तपना

सब कुछ पूरा का पूरा

जी लेना चाहती हूं

तुम्हारे आने से पहले.....

 

रहूं शेष

बस!

उतना

कि

रंग सकूं खुद को

वसंत की कोरी कविता-सा.......

तुम्हारे आने के बाद.....