मैं
अपने हिस्से का
जागना-सोना
हंसना-रोना
पीड़ा-उदासी
शोर-खामोशी
सलीके में रहना
इसके उलट चलना
बुरी नज़र से गुज़रना
सपनों को जीना
अनोखेपन में बसना
आसमान में उड़ना
पलकों में सपने सजाना
सबों की स्मृति से गुम हो जाना
प्रतीक्षा में आंसू बहाना
चहक-खिलखिलाहट में महकना
मौन के रेशों में उलझना
रुदन की पीली धूप में तपना
सब कुछ पूरा का पूरा
जी लेना चाहती हूं
तुम्हारे आने से पहले.....
रहूं शेष
बस!
उतना
कि
रंग सकूं खुद को
वसंत की कोरी कविता-सा.......
तुम्हारे आने के बाद.....
10 टिप्पणियां:
sundar ban padi hai aapki yah kavita... acchi lagi .... :)
वाह क्या बात है!
रहूं शेष
बस!
उतना
कि
रंग सकूं खुद को
वसंत की कोरी कविता-सा.......
तुम्हारे आने के बाद....
ye panktiyan kavita ki jaan hain....
badhai....
पूरा का पूरा पहले ही जी लेंगी तो बाद में जो होगा वह क्या जीना नहीं होगा? एक सवाल उठाती रचना!
ek achchhi kavita padi aapke blog per aakar ....
रहूं शेष
बस!
उतना
कि
रंग सकूं खुद को
वसंत की कोरी कविता-सा.......
तुम्हारे आने के बाद...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
bahut hi badiya likha hai aapne..
mere blog par bhi sawagat hai...
Lyrics Mantra
विमलेश त्रिपाठी से सहमत
nischhalta se chamakdaar anubhuti
huyee ujaagar
bhav paksh ko sahaj hee kar detee
hai sundar
badhaee
aur dhanywaad
Ashok Vyas
ek stree hi aisi kavita likh sakti hai itni komal aur ardr.
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