आँखें बंद
अंधेरे में तुम....
आँखें खुली
उजाले में तुम....
मुट्ठी बंद
तासीर में तुम...
मुट्ठी खुली
हवा में तुम....
क़दम रूके
ज़र्रे-ज़र्रे में तुम...
क़दम बढ़े
कारवां में तुम...
मौन पसरे
सन्नाटे में तुम....
शब्द बिखरे
हर्फ़-हर्फ़ में तुम....
स्वर-लहरियाँ बही
तान में तुम....
स्वप्न बुनें
ताने-बाने तुम.....
निढ़ाल....निःशक्त..... निःशब्द.....
ज़ार-ज़ार रूदन में तुम....
खुशी के बादल तुम....
मुस्कुराहट....हंसी की बारिश तुम.....
मन नैया के केवटिया तुम..............
7 टिप्पणियां:
यह 'तुम' तम के छंट जाने पर चेहरे पर मुस्कान भी ला सकता है और एक नयी राह दिखा सकता है.
बहुत ही सुन्दर रचना अर्पिता जी.
जब सब कुछ तुम ही तुम है तो मैं कौन हूँ ? मैं भी तुम !
आदरणीया अर्पिता जी
नमस्कार !
तुम बहुत ख़ूबसूरत रचना है । जहां तक मैं समझा हूं यह रचना सांसारिक प्रेम से ईश्वरीय प्रेम तक पहुंचने कि यात्रा की रचना है ।
मेरी एक ग़ज़ल के दो शे'र आपके लिए समर्पित हैं -
किसे पाना मुनासिब है , किसे बेहतर गंवाना है
इधर महबूब है ऐ दिल , इधर सारा ज़माना है
यहां मत ढूंढना मुझको , यहां अब मैं नहीं रहता
यहां रहता मेरा दिलबर , ये दिल उसका ठिकाना है
~*~ नव वर्ष २०११ मंगलमय हो ! ~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
इसमें तुम
उसमें तुम
सब में तुम .....
kya khoob kaha apne , tum sirf ek kavita hi nahi apitu man ki abhivyakti hai ..
salaam
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
तो तुम ही तुम हो अर्पिता .
तुम तो तुम ही हो ,अर्पिता
अर्पिता तुम तो हो ही तुम
तुम बस तुम ही रहना अर्पिता
--- प्रदीप
www.neelsahib.blogspot.com
tum hi tum ... bahut sundar rachna. very beautiful.
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