प्रवाल-सी अनूठी
शैवालों-सी रंग-बिरंगी
मीन-सी व्याप्त
मन के समंदर में........
तैरती....विचरती....
रहस्यों में ख़ुद को खोजती...
कुछ चुनती
कुछ बीनती
कुछ बिखेरती..
सहसा
विचलित-सी/बियाबां में भटकती
हांफती-दौड़ती
छू जाती सघन तारामंडल
प्रकाशित जो
स्मृति के उजास से......
10 टिप्पणियां:
बहुत ही प्यारे शब्द और बहुत ही प्यारी कविता.
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मिले सुर मेरा तुम्हारा - नया बनाम पुराना
बहुत बढ़िया बिम्ब .दिल को छू गयी. आप की कलम को सलाम
विचलित-सी/बियाबां में भटकती
हांफती-दौड़ती
छू जाती सघन तारामंडल
प्रकाशित जो
स्मृति के उजास से......
bahut sundar abhivykti badhai
shayad aapke vlag par main pahlibar aya
प्रिय अर्पिता जी
सस्नेह अभिवादन !
स्मृति रचना बहुत अच्छी लगी
कितने कितने बिंब आपने प्रयुक्त किए हैं -
प्रवाल-सी, शैवालों-सी, रंग-बिरंगी मीन-सी …
सुंदर ! अनुपम !
आपकी लेखनी अबाध - निर्बाध चलती रहे …
बहुत शुभकामनाएं हैं !
साथ ही आपको तीन दिन पहले आ'कर गए
विश्व महिला दिवस की हार्दिक बधाई !
शुभकामनाएं !!
मंगलकामनाएं !!!
♥मां पत्नी बेटी बहन;देवियां हैं,चरणों पर शीश धरो!♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
सादर
कल 17/06/2011 को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है.
आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है .
धन्यवाद!
नयी-पुरानी हलचल
प्रवाल-सी अनूठी
शैवालों-सी रंग-बिरंगी
मीन-सी व्याप्त
मन के समंदर में...
अच्छे बिम्ब उभारे हैं रचना में ..सुन्दर अभिव्यक्ति
सुंदर!
bahut sundar srijan, badhai.
please visit my blog too.
आपकी रचना सुंदर है -बस ऐसे ही लिखती रहिये -धन्यवाद
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