बुधवार, 1 दिसंबर 2010

तुम्हारा आना.....

 

मैं

अपने हिस्से का

जागना-सोना

हंसना-रोना

पीड़ा-उदासी

शोर-खामोशी

सलीके में रहना

इसके उलट चलना

बुरी नज़र से गुज़रना

सपनों को जीना

अनोखेपन में बसना

आसमान में उड़ना

पलकों में सपने सजाना

सबों की स्मृति से गुम हो जाना

प्रतीक्षा में आंसू बहाना

चहक-खिलखिलाहट में महकना

मौन के रेशों में उलझना

रुदन की पीली धूप में तपना

सब कुछ पूरा का पूरा

जी लेना चाहती हूं

तुम्हारे आने से पहले.....

 

रहूं शेष

बस!

उतना

कि

रंग सकूं खुद को

वसंत की कोरी कविता-सा.......

तुम्हारे आने के बाद.....

10 टिप्‍पणियां:

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

sundar ban padi hai aapki yah kavita... acchi lagi .... :)

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

वाह क्या बात है!

विमलेश त्रिपाठी ने कहा…

रहूं शेष
बस!
उतना
कि
रंग सकूं खुद को
वसंत की कोरी कविता-सा.......
तुम्हारे आने के बाद....
ye panktiyan kavita ki jaan hain....
badhai....

Anita ने कहा…

पूरा का पूरा पहले ही जी लेंगी तो बाद में जो होगा वह क्या जीना नहीं होगा? एक सवाल उठाती रचना!

राहुल यादव ने कहा…

ek achchhi kavita padi aapke blog per aakar ....

Kailash Sharma ने कहा…

रहूं शेष
बस!
उतना
कि
रंग सकूं खुद को
वसंत की कोरी कविता-सा.......
तुम्हारे आने के बाद...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

ManPreet Kaur ने कहा…

bahut hi badiya likha hai aapne..

mere blog par bhi sawagat hai...
Lyrics Mantra

Neeraj ने कहा…

विमलेश त्रिपाठी से सहमत

Ashok Vyas ने कहा…

nischhalta se chamakdaar anubhuti
huyee ujaagar
bhav paksh ko sahaj hee kar detee
hai sundar

badhaee
aur dhanywaad

Ashok Vyas

लीना मल्होत्रा ने कहा…

ek stree hi aisi kavita likh sakti hai itni komal aur ardr.