आँखों की रौशनी में दुबका
जब-तब उमेठता है कानों को
फिसल कर राह
सरकता है बालों की लम्बाई में और
पसर जाता है हथेलियों में
कोमल नाजुक तान को
दीर्घ गंभीर नाद में
किसी डरावनी चीख सा प्रतिध्वनित करता
उजालों में अदृश्य दृश्यों को उकेरता
मुस्कुराता हाथ मिलाता बगल में बैठता समय
जैसे किसी भूले दुःस्वप्न की दस्तक
जो हूं उससे इतर दिखने की दुविधा में
पसर जाता है हथेलियों में
कोमल नाजुक तान को
दीर्घ गंभीर नाद में
किसी डरावनी चीख सा प्रतिध्वनित करता
उजालों में अदृश्य दृश्यों को उकेरता
मुस्कुराता हाथ मिलाता बगल में बैठता समय
जैसे किसी भूले दुःस्वप्न की दस्तक
जो हूं उससे इतर दिखने की दुविधा में
जीता
जीतता
और बस
जीतता जाता है