बुधवार, 24 नवंबर 2010

शाम

क्या होता है शाम के धुंधलके में जो मन अकेले घबराता है?
क्या होता है कि रौशनी कांच की किरचों-सी चुभने लगती है?
क्या होता है कि दिल अथाह संमदर में डूब जाने को बैचेन हो जाता है?
क्या होता है कि मन भंवरे-सा बैचेन हो फिर वही राग गुनगुनाने लगता है?
क्या होता है कि दिन भर में समेटी सारी तसल्लियां हाथ छुड़ा रुठ जाती है?
क्या होता है कि बेफिक्र तबियत दिल की बस्ती के लिये फिक्रमंद हो उठती है?
क्या होता है कि जो खामोशी संगीत सुना रही होती है वो अपना सुर बदल बेसब्र कर देती है?
सच!!
बहुत सवाल है...
बहुत दुविधायें हैं...
जिनके फेन में डूबती-उतराती
खुद को कभी खोती
तो कभी पाती
सांसों की लय से अलग
नसों की फड़्फड़ाहट से विलग 
बिबों-प्रतिबिबों से परे
दूरी की आभा से दीप्त
आभासी कल्पनाओं को ढ़ेर किये
उसकी राख से मांजती अंधकार
उगाती सूरज अपार
क्षितिज के कोर-कोर में
तानती इंद्रधनुष अनंत
सिरे पर झूलती अविराम
देह उड़ रही
रच रही
अमिट भूगोल जिस पे तरंगित नक्शे आर-पार.....
 
तुम्हारी शीतल छांव की खोज में......

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

याद

खामोश..वीरान शाम के सीने से

अपनी पकड़ छुड़ा

बदहवास

जंज़ीरें तोड़ती

हाथ छुड़ाती

भागती चली आती

समा जाती देह की पोर-पोर में

मन के कोलाहल को घोले

रिसती आँखों के रास्ते

खट्टी-मीठी, कड़वी-फीकी

नमकीन-कुरकुरे स्वाद में.........

........................तुम्हारी याद!!!

बुधवार, 17 नवंबर 2010

याद

हवा में बिखरी....
खुश्बू में महकी...
बहती...
बिखरती...
...मचलती...
साँसों के रास्ते
लहू में घुलती...
नस-नस को समेटे
तन-मन को अपने काफ़िले में सजाती
हौले से...बहुत हौले से...
दस्तक दे
चौंकाती...
चुभलाती...
और
सहला जाती मनचले मन को......
.............................................तुम्हारी याद!!!!!

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

प्रेम

जितना सीधा..उतना उल्टा...
जितना ऊपर...उतना नीचे...
जितना हल्का...उतना भारी...
जितना उथला...उतना गहरा...
जितना फीका...उतना गहरा..
जितना कड़ुवा...उतना मीठा...
जितना आज़ाद...उतना जकड़ा...
जितना सहेजा...उतना बिखरा...
रग-रग में बह्कर
मुझे डुबो लिया अपने में
ढ़ाई आखर प्रेम ने...........

सोमवार, 8 नवंबर 2010

प्यार

सूखी नदियों में बाढ़ आती है?
पत्तियों बगैर पेड़ कहीं झूमते हैं?
हवा बगैर खुश्बू महकती है?
सूरज बगैर चाँद होता है?
याद बगैर हिचकियाँ आती हैं?
सच!
कुछ भी ऐसा नहीं होता.....
फिर
प्यार बगैर
जीवन कैसे हो सकता है.........

सोमवार, 1 नवंबर 2010

लड़की

तुम
मुस्कुराओ..
हंसो..
ठहाके लगाओ..
बतियाओ..
गप्पे मारो..
बात-बेबात
कंधे पर थपकी भी मारो..
प्रेम की बातें करो..
सपने बुनो..
पर
प्रेम न करो........

समझ

तारीखों से उसे
क्या लेना-देना
दिलों-दिमाग पढ्ता है....
ये तो
हम ही कूढ्मगज निकले
जो तारीखों के पुल की बदौलत
आज
यहाँ खडे अकेले हैं....